
- बिक्री से केंद्र सरकार को करीब 12 हजार करोड़ रुपये मिल सकते हैं।
विश्व स्तर पर कीर्तिमान स्थापित करने वाली कोयला कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड से केंद्र सरकार अपनी 15 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की तैयारी में है। अधिकारिक सूत्र बताते हैं कि बिक्री की प्रक्रिया अफर फर सेल के जरिए की जाएगी। शेयर बाजारों में कोल इंडिया के शेयरों के वर्तमान भाव को देखते हुए इस हिस्सेदारी की बिक्री से सरकार को करीब 12 हजार करोड़ रुपये मिल सकते हैं। सूत्र ये भी बतातें है कि पूरी प्रक्रिया इस पर निर्भर करेगी कि कोरोना संकट के चलते शेयर बाजारों में अस्थिरता किस तरह बढ़ती है और सीआइएल के शेयरों पर इसका क्या असर पड़ता है।
अगर कंपनी के शेयरों में ज्यादा बड़ी गिरावट देखी गई तो सरकार सीआइएल को ही कह सकती है कि वह उचित भाव पर सरकार की हिस्सेदारी खरीद ले। इस पूरी कवायद का मकसद यह है कि कोयला क्षेत्र की बदल रही सूरत को देखते हुए सरकार सीआइएल को ज्यादा पेशेवर कंपनी का रूप देना चाहती है। कोयला क्षेत्र में सुधार के तहत सरकार ने इसमें निजी कंपनियों को व्यावसायिक खनन की इजाजत दे दी है।
- इससे पहले सरकार ने जनवरी, 2015 में कोल इंडिया की 10 प्रतिशत हिस्सेदारी बेची थी।
ऐसे में इस क्षेत्र में स्पर्धा बढ़नी तय है और कोल इंडिया को भी उसी हिसाब से खुद में बदलाव करने होंगे।सीआइएल में इस वक्त सरकार की 66.13 प्रतिशत हिस्सेदारी है। अगर वह 15 प्रतिशत हिस्सेदारी की बिक्री करती है, तो कंपनी में वह आधे से कुछ ही ज्यादा की हिस्सेदार रह जाएगी। इससे पहले सरकार ने जनवरी, 2015 में कोल इंडिया की 10 प्रतिशत हिस्सेदारी बेची थी।
इसके एवज में उसे 22,500 करोड़ रुपये मिले थे। लेकिन दुनियाभर में पिछले पांच वर्षो के दौरान कोयले के भाव में गिरावट और घरेलू मांग घटने से कंपनी के शेयर भाव भी गिरे हैं। कोरोना संकट ने सरकार की विनिवेश प्रक्रिया को भी चोट पहुंचाई है।
चालू वित्त वर्ष के लिए सरकार ने विनिवेश के माध्यम से दो लाख करोड़ रुपये से कुछ अधिक जुटाने का लक्ष्य रखा था। लेकिन चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून, 2020) के दौरान कोरोना संकट के चलते कारोबारी गतिविधियां लगभग ठप रही हैं। अेसे में सरकार इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए पर्या’त नकदी भंडार पर बैठी सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचने की योजना बना रही है।
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