बीजेपी सरकार में आदिवासी समाज को केवल चुनाव के वक़्त ही याद किया जाता है। जबकि कांग्रेस के कार्यकाल में कमलनाथ के मुख्यमंत्री रहते आदिवासी समाज के उत्थान के लिए कई काम हुए। लेकिन बीजेपी सरकार में आदिवासीयों की उपेक्षा हुई है। 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस पूरी दुनिया में मनाया जाता है। लेकिन एमपी में आदिवासी दिवस पर भी बीजेपी के किसी नेता ने आदिवासी समाज को याद नहीं किया।
प्रदेश में आदिवासियों की आबादी 21 फीसदी से ज्यादा है। राज्य की 47 विधानसभा सीटें आदिवासी समाज के लिए आरक्षित हैं। फिर भी आदिवासी उपेक्षित है। मुख्य रूप से आदिवासी जातियों में भील, भीलदा, गोंड, सहरिया, बैगा, कोरकू, भारिया, हल्बा, कौल और मरिया की बड़ी आबादी है।
राजनीतिक प्रभाव
प्रदेश में आदिवासियों की आबादी 21 फीसदी से ज्यादा है, इसलिए दोनों प्रमुख सियासी दल इनको साधने के जतन करते हैं। यह जनजातियां दस से ज्यादा लोकसभा सीटों को सीधे तौर पर प्रभावित करती हैं।
प्रदेश में आदिवासी
- 89 आदिवासी बाहुल्य विकासखंड प्रदेश में
- 50.50 लाख विशेष पिछड़ी जाति परिवार सूबे में
- 21 फीसदी आदिवासी आबादी मानी जाती प्रदेश में
- 20 जिलों में आदिवासी संख्या ज्यादा
- 04 एससी लोकसभा सीटें
- 06 एसटी-लोकसभा सीट
2016 के रेकॉर्ड के मुताबिक प्रदेश के 2,314 गांवों में 50.50 लाख विशेष पिछड़ी जनजाति के परिवार निवास करते हैं।
कांग्रेस में था आदिवासी का सम्मान बीजेपी में है उपेक्षा
एमपी में आदिवासी समाज उपेक्षित है कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने आदिवासी बेल्ट के लिए काम किए लेकिन बीजेपी यह वर्ग उपेक्षित है । आदिवासी समाज के लिए सरकार ने इस दिन भी कुछ नहीं किया । – डॉ हीरा अलावा विधायक जयस
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