
मध्य प्रदेश से एक ऐसा मामला सामने आया है जहां गरीब की मदद करने के बजाय उन्हें अनाज के नाम पर घटिया राशन बांटा जा रहा था। लॉकडाउन में गरीबों के भरण-पोषण के लिए सरकार की ओर से कई वादे किए गए, कई स्कीमें निकाली गईं। जिनमें से एक गरीबों को मुफ्त में अनाज देना भी था। लेकिन मध्य प्रदेश में बांटे गए चावलों की गुणवत्ता जांच में बड़ा खुलासा हुआ है, जिसमें पाया कि गरीबों में बांटा गया चावल ना केवल घटिया है, बल्कि इंसानों के खाने लायक ही नहीं है।
दरअसल, बालाघाट और मंडला के आदिवासी बाहुल्य जिलों में गोदामों में भरा घटिया चावल बांटने का मामला सामने आया है। इस मामले में केंद्र सरकार से शिकायत की गई, गुणवत्ता जांची में खुलासा हुआ की ये चावल जानवरों को खिलाने लायक है।
बता दें कि 21 अगस्त को केंद्र सरकार ने राज्य सरकार से 30 जुलाई से 2 अगस्त तक बालाघाट और मंडला में 32 सैंपल एकत्र करने को कहा था। जिसमें 31 डिपो और एक राशन की दुकान से चावलों के सैंपल लिए गए। CGAL लैब में परीक्षण के बाद पाया गया कि सारे नमूने ना सिर्फ मानकों से खराब हैं, बल्कि वो फीड-1 की श्रेणी में हैं जो बकरी, घोड़े, भेड़ और मुर्गे जैसे पशुधन को खिलाने लायक हैं।
गोदामों के रिकॉर्ड के मुताबिक, जिन चावलों के सैंपल लिए गए वो मई-जुलाई 2020 में खरीदे गए थे। रिपोर्ट कहती है चावल ना सिर्फ पुराने और घटिया हैं, बल्कि जिन बोरियों में इन्हें रखा गया है वो भी कम से कम दो से तीन साल पुरानी हैं। खरीद से लेकर पूरे वितरण में गंभीर खामियां हैं।
आपको बता दें कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत मध्य प्रदेश की कुल आबादी का 75 फीसदी हिस्सा खाद्यान्न सुरक्षा के दायरे में आता है। 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य में 25 हजार 490 राशन दुकाने हैं, जिनके माध्यम से 1 करोड़ 17 लाख, यानी लगभग पांच करोड़ छह लाख से ज्यादा हितग्राहियों को एक रुपये किलोग्राम के हिसाब से गेहूं और चावल मुहैया कराया जा रहा है।
हालांकि सच्चाई कुछ और ही है। राज्य में 36 लाख ऐसे गरीब हैं जिन्हें गरीब होने के बावजूद सरकारी राशन नहीं मिल पाता है। वहीं 96 लाख ऐसे गरीब हैं जिनके नाम राशन कार्ड में जुड़े हुए हैं मगर वो अलग-अलग कारण से सरकारी राशन पाने के लिए पात्र नहीं हैं।
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