December 10, 2023

जगमोहन वर्मा ने सिलावट के विरोध में छोड़ी बीजेपी, नेताओं का पैर दबाकर मनाना भी काम नहीं आया

मध्य प्रदेश के विधानसभा उपचुनाव 2020 की हाई प्रोफाइल सीट सांवेर के सियासी समीकरण में एक नया भूचाल आ गया है। शनिवार को बीजेपी से इस्तीफा दे चुके इलाके के कद्दावर नेता जगमोहन वर्मा ने शिवसेना का दामन थाम लिया है। वर्मा ने सांवेर से शिवसेना के सिंबल पर चुनाव लड़ने का एलान भी कर दिया है। उनके इस एलान ने बीजेपी उम्मीदवार तुलसी सिलावट की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। सिंधिया खेमे में खलबली मची हुई है। 

दरअसल, सिंधिया के सबसे करीबी समझे जाने वाले तुलसी सिलावट सांवेर से चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन शिवराज सरकार में जलसंसाधन मंत्री रहे सिलावट का बीजेपी के पुराने लोग जमकर विरोध कर रहे हैं। सिलावट को अहमियत दिए जाने से बीजेपी के पुराने नेता और कार्यकर्ता उपेक्षित महसूस कर रहे हैं, जिससे इस्तीफों का दौर लगातार जारी है। इसी क्रम में दो दिन पहले क्षेत्र के कद्दावर नेता जगमोहन वर्मा ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था।

पैर दबाने के बाद भी नाराजगी खत्म नहीं हुई

बीजेपी के कद्दावर नेता दिवंगत प्रकाश सोनकर के करीबी और सहकारिता प्रकोष्ठ के नगर संयोजक जगमोहन वर्मा के इस्तीफे के बाद पार्टी के शीर्ष नेतृत्व और सिंधिया खेमे में खलबली मच गई। इसके बाद सीएम शिवराज चौहान ने पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता उमेश शर्मा और विधायक आकाश विजयवर्गीय को उन्हें मनाने का जिम्मा सौंपा।

बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय और नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे ने वर्मा के घर पहुंचकर उनकी काफी मान-मनौव्वल की, लेकिन उन्होंने कहा कि वे फैसला ले चुके हैं। प्रदेश प्रवक्ता उमेश वर्मा तो मान-मनौव्वल के दौरान तो जगमोहन वर्मा के पैर ही दबाने लगे। लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद वर्मा टस से मस नहीं हुए। उन्होंने साफ कर दिया कि वे किसी भी हाल में सिलावट का साथ नहीं दे सकते। इस दौरान सोशल मीडिया पर वर्मा के पैर दबाकर मनाने की तस्वीरें खूब वायरल भी हुईं।

पैसों की पेशकश का भी लगा आरोप 

वर्मा की पत्नी ने इस दौरान मीडिया से कहा कि अगर पैसे लेकर काम करना होता तो आज ऐसे हालत नहीं होते। इसका अर्थ यह निकाला जा रहा है कि बीजेपी की ओर से वर्मा को पैसे भी ऑफर किए गए थे। अब खबर है कि वर्मा ने शिवसेना का दामन थाम लिया है और वह शिवसेना प्रत्याशी के रूप में सिलावट को चुनौती देंगे। वर्मा के इस फैसले के बाद सिलावट का भविष्य डगमगाता नज़र आ रहा है। 

जानकारों की मानें तो सांवेर के घर-घर में पैठ रखने वाले वर्मा अगर अपनी पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ते हैं तो इसका सीधा असर सिलावट पर पड़ेगा। यह सीट इसलिए अहम है, क्योंकि इसपर सिंधिया घराने की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। सिलावट की हार-जीत को सीधे-सीधे सिंधिया की नाक का सवा माना जा रहा है।

लगातार हो रहा है विरोध

गौरतलब है कि बीजेपी नेताओं द्वारा सिलावट का विरोध पहली बार नहीं हो रहा है। इसके पहले पूर्व सांसद और बीजेपी नेता प्रेमचंद गुड्डू भी सिलावट के आने के बाद पार्टी से किनारा करते हुए कांग्रेस में आ चुके हैं। कांग्रेस ने गुड्डू को ही सांवेर से अपना प्रत्याशी भी बनाया है। बीते दिनों बीजेपी में उपजे इस असंतोष और बागी सुरों को रोकने के लिए सीएम शिवराज ने इंदौर में अपने कार्यकर्ताओं से यहां तक कह दिया था कि सिलावट भाई नहीं होते तो बीजेपी की सरकार नहीं बन पाती। इसलिए हमें इनका सम्मान करना होगा और इन्हें जीत दिलाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा।

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