मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग में बड़े धांधली का मामला सामने आया है। दैनिक भास्कर की ख़बर के मुताबिक इस धांधली की वजह से राज्य सरकार को क़रीब तीन सौ करोड़ रुपये का नुक़सान होने की आशंका है। अख़बार के मुताबिक़ ये सारा घोटाला कॉलेजों के प्रोफ़ेसर्स को ग़लत ढंग से ऊँचे वेतनमान में डालकर उन्हें ज़्यादा भुगतान किए जाने से जुड़ा है।
आरोप है कि उच्च शिक्षा विभाग और संचालनालय में ओएसडी के तौर पर काम कर रहे कुछ फ़ैकल्टी मेंबर्स ने अपने फ़ायदे के लिए प्रशासनिक अधिकारियों के साथ मिलकर इस घोटाले को अंजाम दिया। इसके लिए यूजीसी के नियमों को तोड़-मरोड़कर उनकी ग़लत ढंग से व्याख्या की गई, जिससे क़रीब 300 प्रोफ़ेसर्स को वो वेतनमान दिया गया, जिसके वो हक़दार नहीं थे। इस तरीक़े से की गई धांधली से सरकारी ख़ज़ाने को क़रीब 300 करोड़ रुपये का नुक़सान पहुँचाया गया।
यूजीसी के नियमों की अनदेखी करके सरकार को चूना लगाया
ख़बर के मुताबिक़ मध्य प्रदेश सरकार ने 1999 में 5वां यूजीसी वेतनमान लागू किया था। नियमों के मुताबिक़ पांचवें यूजीसी वेतनमान में फिक्सेशन के लिए सीनियर स्केल में कम से कम 5 साल की सर्विस अनिवार्य रखी गई थी। इस नियम में सिर्फ़ उन प्रोफेसर्स को छूट दी गई थी, जिनका 1986 की स्कीम में फिक्सेशन हो चुका था। लेकिन ओएसडी स्तर के अधिकारियों ने नियमों की गलत व्याख्या करके 1996 की फैकल्टी को भी सीनियर स्केल में 5 वर्ष की सर्विस की अनिवार्यता की शर्त में छूट दे दी। इस गड़बड़ी की वजह से एक प्रोफेसर को 8 से 10 लाख रुपये एरियर और 10 से 15 हजार रुपये प्रतिमाह का अतिरिक्त फायदा मिल रहा है। अख़बार के मुताबिक इसके लिए यूजीसी के 7वें वेतनमान के लिए वित्त विभाग द्वारा दी गई सहमति का नियम विरूद्ध तरीके से वेतन प्लेसमेंट आदेशों में इस्तेमाल किया जा रहा है।
उच्च शिक्षा मंत्री को भनक तक नहीं
अखबार के मुताबिक़ प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव का कहना है कि उन्हें इस तरह की किसी गड़बड़ी के बारे में कोई जानकारी नहीं है। मोहन यादव ने अख़बार से कहा कि पूरे मामले की जाँच कराई जाएगी और आरोप सही पाए गए तो जिन्हें ग़लत ढंग से ज़्यादा भुगतान किया गया है, उनसे रिकवरी भी की जाएगी।
More Stories
EVM के विरोध में दिल्ली में दिग्विजय हिरासत में
Narmadapuram me vikshipt nabalik ke rape se akrosh
Atithi shikshako ne khola morcha