भारतीय समाज और सत्ता में इस समय ऐसी शक्तियां और प्रवृतियां बलवती हैं जब मनुवादियों की गहरी पैठ है। एक अहम अध्ययन में कहा गया है कि पिछड़ी जातियों जिनमें अतिपिछड़ी जातियों और महिलाएं भारतीय समाज में एक ऐसे वर्ग का निर्माण करती हैं, जो परम्परागत रूप से प्रताड़ना, उपेक्षा व पिछड़ेपन का शिकार रही है।
अतः जब संविधान की प्राथमिकताओं के अनुरूप समाज के कमजोर वर्गों के ऊपर उठाने की बात आती है, तो महिला वर्ग उसमें प्रमुख रूप से आता है लेकिन कई बार अतिपिछड़ी जातियों का जिक्र तक नहीं रहता है। यह निर्विवाद तथ्य है कि भारत में महिलाओं, दलित, वंचित और की राजनीतिक सहभागिता वर्तमान में अपेक्षित स्तर पर विद्यमान नहीं है।
यह सामान्यतः स्वीकार किया जाता है कि सांविधानिक और कानूनी रूप से समानता की घोषणा के पश्चात् भी यदि महिलाएं राजनीतिक प्रक्रिया में समान रूप से भागीदार नहीं है, तो इसके लिए भारतीय सामाजिक व्यवस्था ही उत्तरदायी रही है। यदि प्राचीन भारतीय परम्परा पर दृष्टिपात किया जाए, तो सामाजिक और सामुदायिक जीवन में वंचितों की भागीदारी के विषय में दृष्टिकोण की एकरूपता का अभाव रहा है।
एक ओर भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में अनेक ऐसे उदाहरण खोजे जा सकते है जहां पिछड़ी जातियों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं को सामाजिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों और शासकीय निर्णय प्रक्रिया तक में भागीदारी के अवसर उपलब्ध थे, वहीं दूसरी ओर भारतीय चिन्तन परम्परा में मनु इत्यादि ऐसे कथित विचारकों का स्वर भी मुखर रहा है जिन्होंने महिलाओं की भूमिका को परिवार तक सीमित रखा। और कर्म विशेष की जातियों को वहीं तक सीमित रखा है, जहां तक इनकी जरूरते है, जो एक प्रकार से अन्याय ही है। उनके स्वतन्त्र सामाजिक अस्तित्व को ही मान्यता प्रदान नहीं की।
ऐसे में प्रजापति, रजक, धोबी, सेन समाज के युवाओं को और युवतियों को विशेष प्रकार के रोजगार से जोड़ा जा सकता है और उन्हें रोजगार के समान अवसर भी प्रदान किए जा सकते है। इसके लिए मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेश के अध्यक्ष कमलनाथ ने वादा किया है कि मप्र उपचुनाव में यदि उनकी सरकार बनी तो वह इस समाज के लोगों को न्याय दिलाने के लिए योजना बनाएंगे। इस बात को कांग्रेस ने वचन पत्र में शामिल किया है।
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