कर्मचारियों की पदोन्नति की समस्त विभाग में लंबित प्रक्रिया को प्रारंभ करने के लिए सशक्त कदम उठाएंगे, यह मध्यप्रदेश उपचुनाव में कांग्रेस का वचन पत्र है। इस वचन के साथ कमलनाथ शासकीय कर्मचारियों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे है, जिसमें वो काफी हद तक सफल भी हो रहे है।
एससी-एसटी वर्ग को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण देने पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने स्पष्ट किया था कि इन वर्गों के कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए राज्यों को उनके पिछड़ेपन का डेटा जुटाने की जरूरत नहीं है। इस निर्णय के बाद भी मध्यप्रदेश में कर्मचारियों की पदोन्नति में लगी रोक अभी भी बरकरार है। बीच में कमलनाथ सरकार ने इसे दूर करने का प्रयास जरूर किया था, पर वो कुछ कर पाते तब तक सरकार गिरा दी गई। और शिवराज सरकार आयी जिसने पदोन्नति की प्रक्रिया पर रोक लगा दी है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह जरूर साफ हो गया है कि राज्य सरकार संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार एससी-एसटी के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण दे सकती हैं, लेकिन यह करने से पहले राज्य सरकार को यह देखना होगा कि प्रशासनिक क्षमताओं पर कोई दुष्प्रभाव तो नहीं पड़ रहा है। इसका आकलन करने के बाद पदोन्नति में आरक्षण दिया जा सकेगा।
गौरतलब है कि केंद्र और राज्य सरकारें इस 12 साल पुराने एम नागराज केस से जुड़े फैसले को प्रमोशन में आरक्षण देने में बाधा बता रही थीं। 2006 के फैसले में पांच जजों की बेंच ने कहा था कि एससी-एसटी वर्ग को प्रमोशन में आरक्षण देना अनिवार्य नहीं है। ऐसा करने के इच्छुक राज्यों के लिए कुछ शर्तें रखी गई थीं।
इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए कमलनाथ सरकार कार्यरत थी ताकि पदोन्नति में आ रही दिक्कतों को दूर कर, पदोन्नति की प्रक्रिया को पूरा किया जा सके। बीच में कमलनाथ की सरकार गिर गई। इससे पदोन्नति की कार्यवाही अधूरी रह गई। कमलनाथ ने वादा किया है कि यदि वह पुनः सत्ता में आये तो पदोन्नति के कार्य को आगे बढ़ाएंगे।
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