April 20, 2024

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के गृह ज़िले में स्वास्थ्य सुविधाएँ लचर, बीते एक साल में 724 नवजात शिशुओं की मौत

सुरक्षित प्रसव के लिए सरकारें करोड़ों रुपए योजनाओं में पानी की तरह बहा रही हैं। इसके बावजूद प्रसव के बाद नवजात शिशुओं की मौत थमने का नाम नहीं ले रही है। दूसरे इलाकों की कौन कहे, खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले सीहोर के सरकारी आंकड़े चौकाने वाले हैं। जिला अस्पताल के एसएनसीयू सहित पूरे जिले के सरकारी अस्पतालों में बीते करीब एक साल में 724 नवजात शिशुओं की मौत हो चुकी है। डॉक्टर नवजात बच्चों के कम वजन और प्रसूता के खराब स्वास्थ्य को भी इन मौतों की एक वजह बताते हैं।

यह हाल तब है जबकि जच्चा और बच्चा दोनों सुरक्षित रहें इसके लिए केन्द्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री मातृवंदना योजना और पीएम सुरक्षित मातृत्व अभियान अभियान चलाया जा रहा है। इसके बाद भी बड़ी संख्या में नवजात शिशुओं की मौत के आंकड़े व्यवस्थाओं पर सवाल उठाते हैं। 

आठ माह में 638 शिशुओं ने गंवाई जान

स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े देखें तो अप्रैल से लेकर नवंबर 2020 तक जिलेभर के शासकीय अस्पतालों में प्रसव के दौरान और बाद में 438 शिशुओं की मौत हुई। इनमें आष्टा में 105, बुधनी में 23, इछावर में 107, नसरुल्लागंज में 107 और श्यामपुर में 96 शिशुओं की जान चली गई। 

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जिला अस्पताल स्थित एसएनसीयू में वर्ष 2020 में 2405 नवजात शिशुओं को भर्ती किया गया। जिनमें से 286 को बचाया नहीं जा सका। यहां से 184 को गंभीर हालत में रेफर किया। 228 बच्चे कम वजन के थे। 687 शिशु अन्य जिलों से लाए गए। एसएनसीयू का सालाना बजट 12 लाख रुपए है। यहां 2 वेंटिलेटर, 2 सीपेक मशीन, 20 बेड और शिशुरोग विशेषज्ञ मौजूद हैं। यहां पर सीहोर के साथ ही शाजापुर, राजगढ़ जिले की प्रसूताओं को भी प्रसव के लिए लाया जाता है। 

जिला अस्पताल के एसएनसीयू में बेड तो 20 ही हैं, लेकिन 40 नवजात यहां हमेशा भर्ती रहते हैं। वेंटिलेटर की कमी के चलते कई शिशुओं को भोपाल रेफर करना पड़ता है। एसएनसीयू के प्रभारी डॉ. जयसिंह परमार कहते हैं कि प्रसूताओं में खून की कमी और नवजात शिशुओं का कम वज़न मृत्यु का कारण है। 

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