नायाब शख्सियत… बेगम सुरैया रशीदुर जफर नहीं रही। वे 92 बरस की थीं। उनके इंतकाल से भोपाल रियासत काल का एक सरमाया जुदा हो गया। लोग उन्हें आत्मीयता से बिया कहते थे। वे हमेशा सलवार-कुर्ता में दिखाई देती। पर्दे का एहतमाम करती। वे रिवायतों की पक्षधर थी। साथ ही भोपाल रियासत का चलता-फिरता दस्तावेज थी। होटल जहांनुमा की मालकिन थी। उन्हें भोपाल को पहला हेरिटेज होटल देने का श्रेय जाता है। उनकी देखरेख में तैयार सैकड़ों घोड़ों ने रेसकोर्स में बाजी मारी। उनके इंतकाल की खबर लोगों को रविवार सुबह 6.30 बजे सुपुर्देखाक होने के बाद पता लगी। क्योंकि उनके आखिरी सफर में परिजनों और पड़ोसियों के अलावा कोई नहीं था। परिजनों की मानें तो कोरोना गाइडलाइन के चलते लोगों को आखिरी सफर की सूचना नहीं दी थीं।
बिया ने सेहत के चलते कुछ वर्षों से सार्वजनिक आयोजनों में शामिल होना बंद कर दिया था। उनका वक्त श्यामला कोठी में ही गुजरता था। ब्याह कर वे इसी कोठी में आई थीं। कोठी के बरामदे से बड़े तालाब के दिलकश नजारे को देखकर वे खुश होती थी। शेरों-शायरी में दखल रखने वाली बिया के कमरे में शायरी की ढेरों किताबों का अंबार था। हजारों गजलें, नज्म और शेर उन्हें कंठस्थ थे। हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू और फारसी भाषा फर्राटे से बोलती थी। स्वच्छता पर उनका फोकस रहता था।
उनका दिल काफी बड़ा था। 1955 में सरदार वल्लभ भाई पटेल पॉलिटेक्निक भवन में जब गांधी मेडिकल कॉलेज खुला तो उन्होंने होटल जहांनुमा बिल्डिंग स्टूडेंट के हॉस्टल के लिए अस्थाई रूप से दे दी। यह अलग बात है कि यहां हॉस्टल एक साल ही कायम रह सका।
बिया का अपने शौहर के कारण महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू और लार्ड माउंटबेटन से परिचय हुआ। ये तीनों शख्सियत उनकी दूरदृष्टि की सराहना करते थे। भोपाल रियासत के नवाब सुल्तान जहां बेगम के मंझले बेटे जनरल औबेदुल्ला खां के साहबजादे नवाब रशीदुर जफर की वे पत्नी थीं। उनके ससुर नवाब हमीदुल्ला खां के बड़े भाई थे।
बिया के नाती और बाल भवन स्कूल के संचालक सैयद उमर अली ने बताया कि शादी के कुछ साल बाद नवाब रशीदुर जफर का इंतकाल हो गया। जागीर भी खत्म होने की अटकलें थी। ऐसे में उन्होंने पूरा ध्यान बच्चों की शिक्षा और उच्च नस्ल के घोड़ों को तैयार करने के कारोबार में लगाया। यहां तैयार होने वाले घोड़े रेस के लिए भेजे जाते थे। नतीजे में भोपाल में तैयार घोड़ों को मुंबई समेत देश-दुनिया के रेसकोर्स में अहमियत मिलने लगी। भोपाल स्टड फार्म हाउस के घोड़ों के कारण पटियाला महाराज हाउस के घोड़ों का दबदबा कम हुआ।
करीब 5 दशक तक भोपाल स्टड फार्म हाउस की तूती बोलती रही। 2010 में ये स्टड फार्म हाउस खत्म करने का निर्णय हुआ। तब 75 घोड़े और 5 घोड़ियां थीं। बिया के पिता खुर्शीद अहमद उनकी शादी के वक्त 1945 में झांसी के कमिश्नर थे। भारत-पाक विभाजन के समय वे दिल्ली के कमिश्नर थे। उनके परिवार का अलीगढ़ से ताल्लुक था। बिया के दो बेटे और दो बेटियां में से अब साहबजादा नादिर रशीद और साहबजादी नीलोफर खान ही जीवित हैं। बिया को नीलबड़ के पास इंदरपुरा में स्थित खानदानी कब्रिस्तान में रविवार सुबह 6.30 बजे सुपुर्देखाक किया गया।
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