March 19, 2024

सुप्रीम कोर्ट ने ठुकराया, उम्मीदवार को 2 सीट से चुनाव लड़ने से रोकने की मांग को

नई दिल्ली- सुप्रीम कोर्ट ने किसी उम्मीदवार को 2 सीट से चुनाव लड़ने से रोकने की मांग को ठुकरा दिया है. कोर्ट ने कहा है कि कानून बनाना संसद का काम है और अगर उचित लगे तो वो ऐसा कानून बनाए. याचिका में कहा गया था, किसी का 2 जगह से चुनाव लड़ना और फिर एक सीट को छोड़ देना, मतदाताओं से अन्याय है. इससे सरकारी खजाने पर भी बोझ पड़ता है.

2017 में वकील अश्विनी उपाध्याय की तरफ से दाखिल इस याचिका पर पहले हुई सुनवाई में केंद्र ने इसका विरोध किया था. केंद्र की तरफ से कहा गया था कि जनप्रतिनिधित्व कानून (Representation of Peoples Act) की धारा 33 (7) में इस बात की इजाज़त है कि कोई व्यक्ति 2 सीट से चुनाव लड़ सकता है. इस कानून में बदलाव करना संसद का अधिकार है.

चुनाव आयोग ने याचिका का किया था समर्थन

दूसरी तरफ चुनाव आयोग ने याचिका का समर्थन किया था. आयोग की तरफ से कहा गया था कि उसने खुद 5 जुलाई 2004 को इसका अनुरोध करते हुए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था. आयोग ने कहा था कि जब उम्मीदवार दोनों सीटों से जीत जाता है तो उसे एक सीट छोड़नी पड़ती है. ऐसे में छोड़ी गई सीट पर आयोग को दोबारा चुनाव करवाना पड़ता है. यह सरकारी धन की बर्बादी है. सीट खाली करने वाले से ही दोबारा चुनाव का खर्च वसूला जाना चाहिए.

आज यह मामला चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की बेंच में लगा. जजों ने याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायण से पूछा कि किसी के 2 सीट से चुनाव लड़ने में क्या गलत है? क्या इससे नागरिकों का कोई संवैधानिक अधिकार प्रभावित होता है? शंकरनारायण ने समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) का हवाला दिया. उन्होंने यह भी कहा कि सरकारी खजाने पर बेवजह पड़ने वाले बोझ का भी संज्ञान लिया जाना चाहिए लेकिन जज इससे आश्वस्त नहीं हुए.

चीफ जस्टिस ने जानें क्या कुछ कहा…

चीफ जस्टिस ने कहा, “1996 से पहले किसी उम्मीदवार की तरफ से लड़ी जाने वाली सीटों की संख्या पर कोई पाबंदी नहीं थी. फिर संसद ने कानून में संशोधन कर इसे 2 तक सीमित किया. अब भी संसद चाहे तो सिर्फ 1 सीट से चुनाव लड़ने की अनुमति का कानून बना सकती है.” याचिकाकर्ता के वकील ने लॉ कमीशन की 255वीं रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि इसमें भी कानून बदलने की सिफारिश की गई थी. लेकिन जजों ने इसे संसद के अधिकार क्षेत्र में आने वाला विषय बता कर कोई भी आदेश पारित करने से मना कर दिया.

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