प्राइवेट सेंटरों पर 900 रुपए खर्च करके जांच कराने को मजबूर हैं गर्भवती महिलाएं

शिवपुरी (ईएमएस)। कभी मध्यप्रदेश में कायाकल्प अभियान के अंतर्गत नंबर वन रहा है लेकिन आज इस नंबर वन अस्पताल की हालत यह हो गई है कि यहां पर गर्भवती महिलाओं के लिए अल्ट्रासाउंड तक नहीं हो पा रहा है। जिला मुख्यालय पर सरकारी अस्पताल में अल्ट्रासाउंड मशीन तो है लेकिन रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टर न होने के कारण यह मशीन बंद पड़ी है। मजबूरी में यहां आने वाली गर्भवती महिलाओं को प्राइवेट सेंटरों पर जाकर 900 रुपए खर्च कर अपनी जांच करानी पड़ रही है। गौरतलब है कि गर्भवती महिलाओं को अपने 9 माह के गर्भ के दौरान एक से दो बार डॉक्टर की सलाह पर अल्ट्रासाउंड मशीन से जांच करानी होती है लेकिन सरकारी अस्पताल में यह व्यवस्था फेल है और मामा शिवराज के राज में महिलाएं परेशान हैं।
रेडियोलॉजिस्ट रिटायर हुए तो दूसरे डॉक्टर की नहीं हो पाई व्यवस्था-
शिवपुरी के जिला अस्पताल में मौजूद अल्ट्रासाउंड मशीन शोपीस बनकर रह गईं है। मरीजों ने बताया है कि यहां पर कोई रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टर नहीं है। जिला अस्पताल में रेडियोलॉजिस्ट एमएल अग्रवाल के रिटायर होने के बाद बंद हुई अल्ट्रासाउंड की मशीन को फिर से चालू करने के लिए जिला अस्पताल में पदस्थ एक महिला डॉक्टर अंजना जैन को ट्रेनिंग के लिए भेजा गया था। लेकिन डॉ अंजना ने ट्रेनिंग तो पूरी कर ली, लेकिन वो अभी तक जिला अस्पताल में सेवाएं देने नहीं आ रहीं, जिसके चलते मशीन फिर से बंद हो गई। जिला अस्पताल के आरएमओ ने डॉ. योगेंद्र रघुवंशी ने बताया कि हम व्यवस्था करने में लगे हुए हैं।
प्राइवेट डॉक्टरों से जमाई थी व्यवस्था, लेकिन फेल हो गई
शिवपुरी कलेक्टर रवींद्र कुमार चौधरी के निर्देश पर स्वास्थ्य विभाग के सीएमएचओ डॉ पवन जैन ने कुछ प्राइवेट सोनोग्राफी सेंटर संचालित करने वाले कुछ डॉक्टर्स व रेडियोलॉजिस्ट से बात कर व्यवस्था की थी कि वह जिला अस्पताल में आकर यहां पर मशीन से सोनोग्राफी करेंगे।
शिवपुरी शहर में प्राइवेट सोनोग्राफी सेंटर संचालित करने वाले कुछ डॉक्टर्स व रेडियोलॉजिस्ट ने कलेक्टर की बात मानकर जिला अस्पताल में मौजूद अल्ट्रासाउंड मशीन से जांच करने के लिए दो माह तक सेवाएं देने की बात कही थी। बीते 4 अप्रैल से 4 जून तक जिला अस्पताल में डॉ. पूजा ठाकुर, डॉ. धर्मेंद्र ठाकुर, दिलीप जैन, डॉ. भगवत बंसल, डॉ. कमल ने अपनी सेवाएं दी थीं। आरएमओ के अनुसार इस दौरान उक्त डॉक्टर्स ने लगभग पांच सौ जांच की थीं। लेकिन अब उनका बांड दो माह का था, जो 4 जून को खत्म हो गया। इसके कारण यह प्राइवेट डॉक्टर भी जांच के लिए नहीं आ रहे हैं।
आर्थिक रूप से कमजोर मरीज अधिक परेशान
अब मरीज अल्ट्रासाउंड के लिए बाजार में ही प्राइवेट सेंटरों पर 900 रुपए खर्च करके जांच कराने को मजबूर हैं। ऐसे में आर्थिक रूप से कमजोर मरीज अधिक परेशान हैं, क्योंकि मेडिकल कॉलेज में भी सोनोग्राफी मशीन बंद पड़ी है। जहां शासकीय अस्पताल व मेडिकल कॉलेज में मशीनें बंद हैं, वहीं दूसरी ओर प्राइवेट सोनोग्राफी सेंटरों की शहर में थोकबंद दुकानें हैं, जहां पर वे लोग तो जांच करवा लेते हैं, जो आर्थिक रूप से सक्षम हैं, जबकि गरीब मरीज तो जांच करवा ही नहीं पाता है।
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