April 29, 2024

सम्मेद शिखर नहीं बनेगा पर्यटन स्थल, जैन समाज को कमलनाथ ने दी बधाई

नई दिल्ली- सम्मेद शिखर के मुद्दे पर जारी विरोध-प्रदर्शन के बीच केंद्र सरकार ने बैकफुट पर आ गई है। केंद्र ने झारखंड में स्थित जैन समुदाय के पवित्र स्थल सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल बनाने के फैसले पर तत्काल रोक लगा दी है। केंद्र के इस फैसले के बाद तीर्थ क्षेत्र में कोई निर्माण कार्य नहीं होगा और स्थल की पवित्रता बनाए रखने के लिए वहां होटल, ट्रैकिंग और नॉन वेज पर भी रोक रहेगी।

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की ओर से गुरुवार को जारी नोटिफिकेशन में सभी पर्यटन और इको टूरिज्म एक्टिविटी पर रोक लगाने के निर्देश दिए गए हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार ने एक समिति बनाई है। इसमें जैन समुदाय के दो और स्थानीय जनजातीय समुदाय के एक सदस्य को शामिल किया जाएगा।

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने गुरुवार को दिल्ली में जैन समाज के प्रतिनिधियों से मीटिंग की. इसके बाद यादव ने कहा, ‘जैन समाज को आश्वासन दिया गया है कि पीएम नरेंद्र मोदी जी की सरकार सम्मेद शिखर सहित जैन समाज के सभी धार्मिक स्थलों पर उनके अधिकारों की रक्षा और संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है।’

बता दें कि केंद्र सरकार श्री सम्मेद शिखर जी यानि पार्श्वनाथ (पारसनाथ) पर्वत को धार्मिक पर्यटन क्षेत्र घोषित करने पर विचार कर रही थी। इसके पीछे उसका मकसद ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देना था। जैन समाज का कहना था कि अगर ऐसा होता तो पारसनाथ में होटल और पार्क बनते. लोग दर्शन के साथ छुट्टियां और पिकनिक मनाने भी आते। इससे पवित्र पर्वत पर मांस-मदिरा आदि के सेवन की भी खुली छूट हो जाती। ये युवाओं को मौज मस्ती का अड्डा बन जाता। जैन धर्म में इसकी इजाजत नहीं है।

इससे पहले गुरुवार को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस पर रोक लगाने के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखा था। बहरहाल अब विरोध तेज होता देख केंद्र सरकार बैकफुट पर आ गई है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जैन समुदाय के लोगों को बधाई देते हुए कहा कि आपके संघर्ष के सामने भारत सरकार को अंततः झुकना पड़ा और पूज्य एवं पवित्र स्थल सम्मेद शिखर जी को पर्यटन स्थल की सूची से बाहर करना पड़ा।

कमलनाथ ने कहा, ‘संघर्ष के इस पथ पर पूज्य मुनि श्री सुज्ञेयसागर जी महाराज ने अपने दिव्य प्राणों की आहुति दी और भारतवर्ष के जैन समाज के लाखों साथियों को कड़ाके की सर्दी में सड़कों पर आंदोलन हेतु उतरना पड़ा। कितना सुखद होता कि जैन समाज के मानस को पीड़ा दिए बिना भाजपा सरकार समाज की धार्मिक भावनाओं से जुड़ी मांग को सरलता और सहजता से पहले ही सहर्ष स्वीकार कर लेती परंतु सत्य को स्वीकारने के स्थान पर टालमटोल की राजनीति की गई।’

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