April 28, 2024

भाजपा संसदीय बोर्ड में MP से हटाया शिवराज का नाम, आखिर क्या है विश्लेषकों का कहना

भोपाल- भाजपा ने अपने संसदीय बोर्ड के सदस्यों के नाम का ऐलान किया है। संसदीय बोर्ड में कुछ नए चेहरों को जगह दी गई है। इसमें 9 साल बाद मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बाहर कर दिया गया है। उनकी जगह प्रदेश के दलित नेता सत्यनारायण जटिया को जगह मिली है। शिवराज भाजपा के सबसे सीनियर मुख्यमंत्री हैं। इस कारण वे पिछले 9 साल से संसदीय बोर्ड के सदस्य थे। इस बार संघ के करीबी माने जाने वाले और 7 बार उज्जैन से सांसद रहे जटिया को उनकी जगह शामिल किया गया है। जानकार मान रहे है कि मप्र में अगले साल होने वाले चुनाव की तैयारी में भाजपा अपना चेहरा बदलना चाहती है।

मुख्यमंत्री बनने के पहले कार्यकाल में शिवराज करीब आठ महीने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। एक बार वे संसदीय बोर्ड में सदस्य भी रह चुके हैं। बीजेपी के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड बनाने वाले शिवराज के राजनीतिक कद को देखते हुए संसदीय बोर्ड से बाहर होने पर विश्लेषक हैरान हैं। यह बदलाव ऐसे समय किया गया है जब अगले साल मप्र में विधानसभा चुनाव होना है।

जानिए क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
तब पीएम पद के लिए शिवराज का भी था नाम
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक अरुण दीक्षित कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से भाई-भतीजावाद और परिवारवाद को लेकर जो संदेश दिया, उसके पीछे पार्टी के बड़े नेताओं के लिए संकेत हैं। चुनावी राजनीति के नजरिए से देखें तो शिवराज सिंह चौहान भले ही नरेंद्र मोदी के बाद मुख्यमंत्री बने हों, लेकिन सांसद उनसे (नरेंद्र मोदी) पहले बने थे। विदिशा से अटल बिहारी वाजपेयी की सीट खाली होने के बाद शिवराज सांसद बने थे। दीक्षित कहते हैं कि 2014 में लालकृष्ण आडवाणी ने प्रधानमंत्री पद के लिए जो नाम सुझाए थे, उनमें शिवराज सिंह चौहान का भी नाम था। ऐसा पहली बार हुआ है, जब संसदीय बोर्ड में अनुभवी नेताओं को जगह नहीं दी गई है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को संसदीय बोर्ड से बाहर करना तो यही दर्शाता है।

यह पीएम की किसी चुनावी रणनीति का हिस्सा
बीजेपी के एक सीनियर लीडर ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा- बीजेपी अब नए पैटर्न पर काम कर रही है। खासकर प्रधानमंत्री के फैसलों पर कोई सवाल उठाया ही नहीं जा सकता। ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी भी मुख्यमंत्री को बोर्ड में शामिल नहीं किया गया हो। यह उनकी (नरेंद्र मोदी) की किसी चुनावी रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है।

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