May 19, 2024

शिकायतकर्ता बोली-कमरे से आती थीं चीखने की आवाजें

उज्जैन के आश्रम में ​​​​​​​बच्चों से होता था अमानवीय बर्ताव; महंत साधे रहे मौन

उज्जैन – मेरा बच्चा भी एक साल से आश्रम में रहकर पढ़ाई कर रहा है। मैं अक्सर उससे मिलने जाती थी। वहां जाने पर मुझे बाकी बच्चों के साथ अमानवीय बर्ताव देखने को मिलता था। कई बच्चे बुखार में तड़पते रहते थे। उनकी कोई सुध लेने वाला नहीं होता था।
मैं अक्सर महंत जी को शिकायत करती थी लेकिन वो कोई एक्शन नहीं लेते थे। मैं उनसे बार-बार शिकायत कर परेशान हो चुकी थी। मैंने सोच लिया था कि एक साल बाद परीक्षा होने पर अपने बच्चे को इस दलदल में नहीं रहने दूंगी।’
ये कहना है रश्मि शर्मा का। रश्मि ही वह महिला है, जिसकी वजह से उज्जैन के दंडी सेवा आश्रम में यौन शोषण के मामले का खुलासा हुआ है। इस पूरे मामले को सामने लाने में रश्मि ने व्हिसिल ब्लोअर की भूमिका निभाई है।
रश्मि का बेटा भी इसी आश्रम में पढ़ता है। उसी ने 16 अप्रैल को आश्रम प्रबंधन से छुप कर मां को कॉल किया था। इसके बाद वह आश्रम पहुंची, पूरे मामले की जानकारी ली। पेरेंट्स का एक वॉट्सऐप ग्रुप तैयार किया। ग्रुप पर डिस्कस करने के बाद सभी पेरेंट्स 30 अप्रैल को आश्रम पहुंचे थे। इसी के बाद कुकर्म कांड का खुलासा हुआ। पढ़िए, किस तरह रश्मि ने आश्रम में चल रहे घिनौने कांड का पर्दाफाश किया…
आश्रम में बच्चों के साथ हुए यौन शोषण के खुलासे के बाद दैनिक भास्कर की टीम 2 मई को यहां पहुंची थी। आश्रम के मुख्य महंत गजानंद सरस्स्वती से बात की तो उन्होंने कहा था कि सेवादार अजय ठाकुर गुनहगार हो सकता है, लेकिन हमारे आचार्य राहुल शर्मा आरोपी नहीं हैं। उन्हें जबरदस्ती फंसाया जा रहा है।
पूछा- राहुल को कौन फंसा रहा है? महंत ने उस वक्त ब्यावरा की रहने वाली रश्मि शर्मा का नाम लिया था। उन्होंने कहा था कि उसी ने ये पूरी साजिश रची है। चैत्र नवरात्रि की अष्टमी-नवमी को वो यहां आई थी। उसने आचार्य राहुल के साथ बहस की थी।
दैनिक भास्कर ने महंत से रश्मि शर्मा का नंबर मांगा तो उन्होंने कहा कि नंबर नहीं है। इसके बाद भास्कर ने रश्मि का नंबर तलाश किया और उनसे बात की। रश्मि ने आश्रम में होने वाली सारी गतिविधियों के बारे में सिलसिलेवार तरीके से जानकारी दी। ये भी बताया कि कैसे उन्होंने बच्चों के पेरेंट्स को इस मामले में एकजुट किया।

रश्मि बोलीं- बच्चे बुखार की हालत में तड़पते रहते, महंत खाली पेट गोलियां खिलाते

रश्मि कहती हैं कि मेरे दो बेटे हैं। पति का निधन हो चुका है। एक ब्यूटी पॉर्लर में काम करती हूं। साल 2020-21 में मैंने अपने बड़े बेटे का आश्रम में एडमिशन कराया था। जब वह कक्षा नौवीं में था तो कुछ निजी कारणों की वजह से उसे वापस बुला लिया। इसके 6 महीने बाद 2022-23 में मैंने छोटे बेटे का 8वीं में एडमिशन कराया। उसे वहां पढ़ते हुए करीब एक साल होने वाला है।
रश्मि कहती हैं कि एक बार देखा कि बच्चे बुखार में तड़प रहे हैं। इसके बाद मैंने वहां के मुख्य महंत को कहा-देखिए, बच्चों को बुखार है। उनका इलाज करवाइए। मेरे कहने पर महंत हाथ में ढेर सारी गोलियां लेकर आए और उन बच्चों को खिला दीं।
उन्होंने ये भी नहीं देखा कि बच्चों ने खाना खाया या नहीं? उन्हें खाली पेट ही दवा दे दी। कुछ देर मैं वहां रही तो देखा कि जिन बच्चों ने गोलियां खाई थीं, वे बाथरूम में बेहोश होकर गिर पड़े। इन्हीं सब बातों को लेकर अक्सर मैं महंत को शिकायत करती थी कि आप पेरेंट्स से 25 हजार रु. फीस ले रहे हैं लेकिन बच्चों को सुविधा नहीं दे रहे हैं।
मैं खुद फीस कैसे भरती हूं, ये मैं खुद जानती हूं। महंत मेरी बातों को केवल सुनते थे कोई एक्शन नहीं लेते थे। इसके बाद मैंने महंत को कहना छोड़ दिया और आश्रम की व्यवस्थाओं को अनदेखा करना शुरू कर दिया।
वे कहती हैं- मैं अपने बेटे से मिलने हर महीने आश्रम जाती थी। उससे मिलकर और सामान देकर वापस आती थी। इस दौरान मुझे कुछ ऐसी बातें देखने को मिलीं, जो अमानवीय थीं। आश्रम में बच्चे खुले में रहते थे। बाथरूम गंदगी से भरे हुए थे। बच्चों को एक कमरे में जानवरों की तरह ठूंसकर रखा गया था। उनके बिस्तर भी साफ नहीं थे।

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