April 26, 2024

जबलपुर में कमिश्नर ने बदल दी कोर्ट की यह ब्रिटिश कालीन व्यवस्था, जाने यहाँ

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में जबलपुर (Jabalpur) के संभागायुक्त (Divisional Commissioner) की एक पहल चर्चा का विषय बनी हुई है. संभागायुक्त ने ब्रिटिश कालीन (British Period) व्यवस्था (Arrangement) को बदलते हुए तय किया है कि उनकी कोर्ट में अब अधिकारी और पक्षकार सब बराबरी पर बैठेंगे. इस व्यवस्था को ‘कानून के सामने सब समान हैं’ (Equality Before Law) का सिद्धांत माना गया है.

गौरतलब है कि किसी न्यायालय के पीठासीन अधिकारी को एक उच्च स्थान पर बैठने एवं पक्षकारों या वकीलों को निचले स्थान पर बैठने या खड़े रहकर पैरवी करने की व्यवस्था अभी तक चली आ रही है. हालांकि, यह प्रावधान किसी कानून में नहीं है फिर भी साम्राज्यवादी और उपनिवेशवादी ब्रिटिश व्यवस्था के समय से इस प्रकार की परम्परा न्यायालयों में चली आ रही है. इसे दूर करने की पहल जबलपुर के संभागायुक्त बी चंद्रशेखर ने बखूबी की है. उन्होंने अपने न्यायालय से सभी उच्च स्थान हटवा दिए हैं और पीठासीन अधिकारी, वकील और पक्षकार सभी के लिए समान बैठक व्यवस्था करवा दी है. यह परिवर्तन क्रांतिकारी माना जा रहा है और उम्मीद है कि इसका पालन बाकी जगह भी होगा.

संभागायुक्त बी चन्द्रशेखर ने यह कहा

संभागायुक्त बी चन्द्रशेखर कहते हैं, “हो सकता है इसे मात्र प्रतीकात्मक समानता माना जाए परन्तु प्रतीकात्मक होते हुए भी यह महत्वपूर्ण है और भविष्य के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत होगा. यह व्यवस्था हमारे बुजुर्गो के लिए भी एक तरह का सम्मान है.”

वकीलों को मिलेगा यह आराम

संभागायुक्त बी चंद्रशेखर द्वारा ने न्यायालय की नई व्यवस्था प्रदेश या देश में इस तरह का संभवतः एकमात्र उदाहरण है. देश में सभी प्रकार के न्यायालयों में एक विशिष्ट प्रकार की बैठक व्यवस्था होती है. चाहे वह सिविल न्यायालय हो, दाण्डिक न्यायालय हो या राजस्व न्यायालय, सभी में पीठासीन अधिकारी एक उच्च स्थान पर बैठते हैं और पक्षकार, वकील, आदि निचले स्तर पर बैठते हैं. वकील को खड़े रहकर ही अपनी बातें रखनी होती हैं.

कभी-कभी साक्ष्यों के परीक्षण, प्रतिपरीक्षण या बहस के दौरान वकीलों को घंटों खड़े रहना पड़ता है. ऐसे में बुजुर्ग पक्षकार एवं वकीलों के लिए यह व्यवस्था बेहद कठिन और पीड़ादायी होती है. अब संभागायुक्त के न्यायालय में किसी पक्षकार या वकील को खड़े रहकर अपनी बात रखने की आवश्यकता नहीं पड़ती है, वे एक ही स्तर पर पीठासीन अधिकारी के समक्ष रखी गई कुर्सियों पर बैठकर अपनी बात रखते हैं.

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