कांग्रेस के सभी दिग्गज नेता जातिगत जनगणना प्रदेश चुके हैं बयान
भोपाल – मध्यप्रदेश के अगले विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस जाति जनगणना को मुद्दा बनाने की तैयारी में है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने इसे ही मुद्दा बनाकर बीजेपी के अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) वोट बैंक में सेंध लगाई है। मध्यप्रदेश में पिछले चार साल से ओबीसी आरक्षण को 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करने का फायदा देने की हिमायती बनकर कांग्रेस-बीजेपी श्रेय लेना चाहती हैं। इसकी वजह है कि प्रदेश में आधी आबादी (49 फीसदी) ओबीसी वर्ग की ही है।
जब 2019 में कमलनाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करने का निर्णय लिया था, तभी बीजेपी सतर्क हो गई थी। नगरीय निकाय व पंचायत चुनाव में इसका असर देखने को भी मिला था। अब पहली बार है कि विधानसभा चुनाव में दलित-आदिवासी से ज्यादा फोकस पिछड़ों पर होगा।
जानिए, कर्नाटक में कांग्रेस की क्या थी रणनीति
कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने तय रणनीति के तहत ओबीसी वोटर्स की सेंधमारी की है। राहुल गांधी ने जाति जनगणना के आंकड़े नहीं बताने का मुद्दा ओबीसी के अपमान से जोड़कर उठाया। उधर, बीजेपी ने मोदी सरनेम मामले में राहुल की टिप्पणी को ओबीसी का अपमान बताकर कांग्रेस को घेरा, लेकिन इसका ज्यादा असर नहीं हुआ। कर्नाटक में 22 फीसदी ओबीसी वोटर हैं, जो 30 सीटों पर सीधा असर डालते हैं। इस बार कांग्रेस ने 52 ओबीसी उम्मीदवारों को टिकट दिया था, जबकि बीजेपी ने 37 ओबीसी प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को ओबीसी का 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिला था।
कर्नाटक के रिजल्ट का एमपी में असर
जानकार कहते हैं कि मप्र के विधानसभा चुनाव में ओबीसी आरक्षण बड़ा मुद्दा होगा। मप्र में 60 विधायक ओबीसी वर्ग से आते हैं। कमलनाथ सरकार ने ओबीसी को प्राप्त आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया था। मामला अदालत में गया और अदालत ने अंतरिम आदेश जारी कर 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण पर रोक लगा दी। बीजेपी ने इसके लिए कांग्रेस को दोषी बताया। अब विधानसभा चुनाव में दोनों ही पार्टियां ओबीसी वोटर्स को साधने के लिए इसे मुद्दा बनाएंगी।
कर्नाटक का फॉर्मूला मप्र में आजमाएगी कांग्रेस
कर्नाटक चुनाव के परिणाम बताते हैं कि वहां कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिलने में ओबीसी के तीन बड़े समुदाय लिंगायत, कुरूबा और वोक्कालिगा का अहम रोल था। वहां 17% लिंगायत, 8-9% कुरुबा और 15% वोक्कालिगा वोटर्स हैं। कांग्रेस अब मध्यप्रदेश में कर्नाटक के फॉर्मूले को आजमाने की तैयारी में है।
कर्नाटक में लिंगायत समुदाय हमेशा से बीजेपी का समर्थक रहा है, लेकिन इस बार कांग्रेस ने जातिगत समीकरण साधने के लिए तय रणनीति के तहत चुनाव लड़ा और इस समुदाय के 25 से 30 फीसदी वोट लेने में सफल रही। इसके अलावा दलितों का 64 फीसदी वोट भी कांग्रेस के पक्ष में आया। यदि मध्यप्रदेश की बात करें तो कांग्रेस का दलित, आदिवासी वोट बैंक मजबूत रहा है। यहां अड़चन हमेशा से ओबीसी वोटर है, क्योंकि यह वर्ग बीजेपी के साथ खड़ा रहता है। इसकी वजह यह है कि प्रदेश की बागडोर संभाल चुके उमा भारती, बाबूलाल गौर और अब शिवराज सिंह चौहान ओबीसी वर्ग से ही आते हैं। ओबीसी वोटर को अपने पाले में करने के लिए खास रणनीति के तहत अब कमलनाथ लोधी सहित अन्य समाजों पर फोकस बढ़ा रहे हैं।
जातिगत जनगणना से कांग्रेस को कितना फायदा हाेगा?
कर्नाटक चुनाव में राहुल गांधी ने जाति जनगणना का मुद्दा उठाया। यदि कांग्रेस इसे चुनावी मुद्दा बनाएगी तो बीजेपी कमजोर नजर आएगी, भले ही बीजेपी का प्रचार तंत्र बहुत मजबूत है। द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाए जाने पर कहा गया था कि आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए यह बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक है, लेकिन इसका ज्यादा फायदा होता दिख नहीं रहा है।
कमलनाथ ने कैसे पलटा MP का सियासी ट्रेंड
इस मुद्दे को सबसे पहले कांग्रेस ने ही पकड़ा था। 2018 में कमलनाथ के नेतृत्व में बनी कांग्रेस की सरकार ने 2019 में कैबिनेट में एक प्रस्ताव पारित कर राज्य में ओबीसी का आरक्षण 14% से बढ़ाकर 27% करने का फैसला किया था। बाद में विधानसभा ने इसे सर्वानुमति से मंजूरी भी दे दी थी। मामला आगे बढ़ता, उससे पहले ही मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग की परीक्षा में बैठने वाले कुछ छात्रों ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दे दी। कोर्ट ने स्टे दे दिया। तब से ही मामला कोर्ट के विचाराधीन है।
13 जिलों में सबसे ज्यादा ओबीसी आबादी
चंबल से लेकर बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र तक ओबीसी आबादी सबसे ज्यादा है। इन क्षेत्रों में 13 जिले मुरैना, भिंड, दतिया, शिवपुरी, अशोक नगर, सागर, छतरपुर, टीकमगढ़, निवाड़ी, पन्ना, सतना, रीवा और सिंगरौली आते हैं। इन जिलों की 61 सीटों में से 40 पर बीजेपी का कब्जा है, जबकि कांग्रेस 19 सीटों पर काबिज है। बीएसपी और सपा को एक-एक सीट मिली है।
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